असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.
प्रेमचंद ने निगम जी करघे की दुकान के बारे में लिखा है कि मैंने फिलहाल एक कपड़े का कारखाना खोल रखा है जिसमें करघे चल रहे हैं. कुछ चरखे वगैरह बनवाए भी जा रहे हैं. एक मैनेजर पचीस रुपये माहवार पर रख लिया है. गो उससे मुझे माहवार कुछ न कुछ नफा जरूर होगा लेकिन इतना नहीं कि मै उस पर तकिया कर सकूं.